आत्मा असीम है जब की मस्तिष्क सिमित है  

आत्मा समुद्र की भांति है जिसके अन्दर रोशनी भरी पड़ी है। और जब इस समुद्र (रुपी आत्मा) को आप के मस्तिष्क के छोटे प्याले में उडेल दिया जाता है तब प्याला अपना अस्तित्व खो देता है और सब कुछ अध्यात्मिक हो जाता है। सभी कुछ। आप सब कुछ अध्यात्मिक बना सकते हैं। हरेक चीज़। आप जिस चीज़ को भी स्पर्श करे वह अध्यात्मिक हो जाती है। रेत अध्यात्मिक हो जाती है, जमीन अध्यात्मिक हो जाती है, वातावरण अध्यात्मिक बन जाता है, ग्रह - नक्षत्र इत्यादी भी अध्यात्मिक बन जाते है। सब कुछ अध्यात्मिक हो जाते हैं।


यह आत्मा समुद्र (की भांति असीम) है। जब कि आपका मस्तिष्क सिमित है।

आपके सिमित मस्तिष्क में निर्लिप्तता (detachment) लानी होगी। मस्तिष्क की सभी सीमाओं को तोड़ना होगा। ताकि जब यह समुद्र इस मस्तिष्क को प्लावित कर देता है तब यह उस छोटे प्याले का कण - कण रंग में रंगा जाए। सम्पूर्ण वातावरण, प्रत्येक वास्तु, जिस पर भी आप की दृष्टी जाए, रंग जानी चाहिए। आत्मा का रंग, आत्मा का प्रकाश है और ये आत्मा का प्रकाश कार्यान्वित होता है। कार्य करता है, सोचता है, सहयोग प्रदान करता है, सब कुछ करता है।



- परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी
(पंढरपुर, २६ फरवरी १९८५)


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श्री माताजी निर्मला देवी